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Shloka: | गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते। न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥ |
Bhagavad Gita Reference: | 1.30 |
Mahabharata Reference: | 6023030 |
Hindi Trnaslation: | हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी जल रही है तथा मेरा मन दुविधायुक्त एवं भ्रमित सा हो रहा है, अत: अब मैं रथ भी पर खड़ा रहने में असमर्थ हूँ ॥३०॥ |
Sandhi-split Shloka: | गाण्डीवम् स्रंसते हस्तात् त्वक् च एव परिदह्यते न च शक्नोमि अवस्थातुम् भ्रमति इव च मे मनः |
Anvayakrama: | हस्तात् गाण्डीवम् स्रंसते, त्वक् च एव परिदह्यते,अवस्थातुम् च न शक्नोमि मे मनः च भ्रमति इव॥ |
Bhagavad Gita Tagged Shloka: | गाण्डीवं/NS स्रंसते/KP हस्तात्/NP त्वक्/NP च/AVK एव/INTF परिदह्यते/KP न/AN च/AVK शक्नोमि/KP अवस्थातुं/KKS भ्रमति/KP इव/ASD च/AVK मे/SN मनः/NP ॥/PUNC 1.30/PUNC ॥/PUNC Tagging scheme used |